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मुनिसंस्था के नियम सदस्य का एक मल-गुण कहलाया ।
छट्ठा आवश्यक कायोत्सर्ग है । इसका अर्थ है शरीर का त्याग अर्थात् शरीर से ममत्व छोड़ना। इसके लिये आजकल खड़े होकर कुछ जाप जपने की क्रिया भी प्रचलित है । शरीर से ममत्व छोड़ना अर्थात् अपने स्वार्थ को गौण बना देना, कष्टों से न डरना आदि अच्छी बातें है; परन्तु उसको अलग गिनाने की ज़रूरत नहीं है । वास्तव में समभाव तथा इन्द्रिय-विजय करने से सच्चा कायोन्सर्ग हो जाता है।
केशलौंच भी मुनिणे का मूल-गुण माना जाता है । कम से कम दो मास और अधिक से अधिक चार मासमें * साधु को सिर के, दाढी के और मूंछों के बाल उखाड़ डालना चाहिये । स्वेताम्बर सम्प्रदाय में यद्यपि यह मूल-गुणों में नहीं रखा गया है, फिर भी दिगम्बरों के समान उनमें भी यह एक अनिवार्य नियम माना जाता है । साधु कष्टसहिष्णु है कि नहीं, इसकी जाँच के लिये यह मूल-गुण बनाया गया है । कायर लोग साधु-संस्था में न घुस आवें, इसके लिये भी यह मूल-गुण उपयोगी हुआ था। उस समय को देखते हुए इस प्रकार शारीरिक कष्ट सहन उपयोगी समझा गया; परन्तु आज इसकी ज़रूरत नहीं है । सच्ची साधुता शारीरिक कष्ट-सहन में नहीं है, बल्कि इससे तो अनेक गुणहीण व्यक्ति साधु-संस्था में घुस जाते हैं और त्यागी विद्वान् लोग नहीं जा पाते । हाँ, आवश्यकता हो तो यह कष्ट भी सहन किया
* बिय तिय चउकमासे लोचो उकस्स मझिम जहण्णो । सपडिकमणे दिवसे उववासेणेव काययो । मूलाचार १-२९ ।