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[जैनधर्म-मीमांसा
शब्द निकल गया है तो उसे स्वीकार करना, अथवा शक्य न हो तो अपने ही आप उसका पश्चात्ताप करना आवश्यक है। जिनके हम अपराधी हैं, उनके विषय में तो कुछ ध्यान ही न दें और दुनिया भर के जीवों से माफी मांगने का डील करें-इस दंभ से कुछ लाभ नहीं है । अपने विशेष पापों का शोधन करना ही प्रति. क्रमण का उद्देश है । प्रतिक्रमण के लिये किसी नियत समय की आवश्यकता नहीं है । आवश्यकता सिर्फ इतनी है कि वह अपराध के बाद जितनी जल्दी किया जाय उतना ही अच्छा है। अपराध के जितने अधिक समय बाद प्रतिक्रमण किया जायगा, उसका मूल्य उतना ही कम होगा।
प्रश्न-जो काम हो गया सो हो गया । अब उसके नाम पर रोने से क्या फायदा ? अब तो आगे का विचार करना चाहिये ।
. उत्तर-आगे का विचार करने के लिये ही पीछे का रोना है। अपने लिये हुए काम की बुराई को अगर कोई स्वीकार न करे, उसकी निन्दा न करे तो वह भविष्य में उससे क्यों बचेगा ! भविष्य की शुद्धि के लिये ही यह भूतालोचना है। दूसरी बात यह है कि जगत् की शान्ति के लिये तथा आधे से अधिक अनयों को रोकने के लिये प्रतिक्रमण की आवश्यकता है। प्रतिक्रमण से द्वेष-वासना दूर हो जाती है, और द्वेष-वासना का दूर होना अधिकांश अनों का दूर हो जाना है । देव का सद्भाव जितना दुःखप्रद है उतना बाप कष्ट नहीं । विनोद में किसी को कितना ही मारो उसे दुःख नहीं होता, परन्तु क्रोध से आँख दिखलाना ही