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पूर्ण और अपूर्ण चरित्र]
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व्यय नहीं करना पड़ती-इस प्रकार उसकी सारी शक्ति समाज-सेवा में जाती है । जगत् के छोटे-छोटे उपद्रव मनुष्य की शक्ति को क्षीण कर देते हैं। परन्तु गृह-त्यागी उनसे बच जाता है। उदाहरणार्थ गृहस्थावस्था में कोई अपमान कर दे और सहन करनेवाला
चुपचाप सहन कर ले तो साधारणतः लोग उसे कायर समझते हैं, इसलिए उसे उस अपमान के निराकरण करने के लिए शक्ति लगानी पड़ती है; परन्तु गृह-त्यागी होने पर अपमान का सह जाना गौरव और महत्ता का चिन्ह समझा जाता है । उसके अपमान को निराकरण करने का काम समाज का हो जाता है । जिन घटनाओं या त्रुटियों से एक गहस्थ-कायर, निर्बल या अभागी कहलाता है, वे ही एक गृह-त्यागी के लिए शोभा की चीन हो जाती हैं। इससे उन कार्यों में उनकी शक्ति बरबाद नहीं होती।
(ख) गृहस्थावस्था के मानसिक कष्टों से बच जाता है। यद्यपि उसे खाने-पीने रहने आदि का कष्ट होता है और बढ़ जाता है; परन्तु पराधीनता, अपमान, गुलामी आदि के कष्टों से बच जाता है । बड़े से बड़े गदशाह के सामने उसको झुकने की ज़रूरत नहीं पड़ती । इससे वह नेतृत्व भी कर सकता है।
___ यद्यपि गृहस्थ वेष में रहते हुए भी ये बातें पैदा हो सकती हैं-हुई है और होती हैं; परन्तु उसमें कुछ असुविधा रहती है।
४-कभी कभी कौटुम्बिक परिस्थिति के कारण भी गृह-त्याग करने की ज़रूरत हो जाती है । कुटुम्बी ख़ासकर पत्नी जब अपने ही समान न हो, उसका स्वभाव और आवश्यकताएँ ऐसी हों जिससे वह साथ न दे सकती हो, तब भी गृह त्याग करने की