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पूर्ण और अपूर्ण चरित्र ]
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या शस्त्र मार्ग का पथिक न होने पर भी तीर्थंकर को शस्त्र पकड़ना पड़ता है, जैसा कि मुहम्मद साहिब को पकड़ना पड़ा | मतलब यह कि जिस ज़माने में जिस प्रकृति के लोग सत्य के विरोधी होते हैं उसको दबाने के लिये जिस नीति की आवश्यकता होती है, तार्थंकर को उसी नांति का अवलम्बन करना पड़ता है । म० महावीर, म० बुद्ध को जन-सेवा के लिये गृह-त्याग की आवश्यकता थी, इसलिये उनने गृहत्याग किया और श्रीराम तथा श्रीकृष्ण को शस्त्र उठाने की आवश्यकता थी, इसलिये उनने वैसा किया, तथा मुहम्मद साहिब को दोनों की आवश्यकता भी या बीच का मार्ग पकड़ना था, इसलिये उनने वैसा किया । इसी प्रकार अन्य तीर्थंकरों के विषय में भी समझना चाहिये ।
२ - गृह त्याग करने में तथा गृहस्थ रहने में व्यक्तिगत रुचि भी कारण हो जाती है । कोई तीर्थंकर समाज के भीतर रहकर 1 समाज का उद्धार करना चाहता है और कोई समाज से अलग हटकर समाज की सेवा करना चाहता है। दोनों ही तरह से कार्य हो सकता है; इसलिये अपनी-अपनी रुचि के अनुसार कार्य करने की शैली का चुनाव कर लिया जाता है । इस रुचि में उसकी शिक्षा - संगति का असर तो होता ही है, साथ ही कुछ घटनाचक्र भी इस रुचि में कारण हो जाता है। समाज में दोनों तरह के प्राणी होते हैं - एक तो मुढ़तावश अधर्म करने वाले या दुःख उठाने वाले दूसरे शक्ति, सम्पत्ति आदि के मद से अत्याचार करने वाले । ये दोनों तरह के प्राणी हरएक समाज में प्रायः सर्वदा होते हैं । यह बात दूसरी है कि इनमें से किसी एक दल की