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पूर्ण और अपूर्ण चरित्र] .
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प्रश्न-जब गृहस्थ और मुनि दोनों ही आत्म विकास की चरम सीमा पर पहुँच सकते हैं, तब म० महावीर, म० बुद्ध आदिने गृहत्याग क्यों किया तथा किसी को भी मुनि बनने की ज़रूरतही क्या है ! समाज को ही इस संस्था का बोझ क्यों उठाना चाहिये !
उत्तर--कोई समय ऐसा भी हो सकता है, जब इस संस्था की समाज को आवश्यकता न रहे, तथा पुराने ढंगकी मुनि संस्था तो आज भी अनावश्यक है, फिर भी इस संस्थाकी आवश्यकता होती है। यह सब देशकाल तथा व्यक्तिगत रुचिके ऊपर निर्भर है । श्रीराम और श्रीकृष्ण का समय ऐसा था, उनकी रुचि ऐसी थी तथा उनके साधन तथा परिस्थिति ऐसी थी कि वे गृहस्थ रहकर ही समाजकी सेवा कर सकते थे यही बात म० जरथुस्त तथा मुहम्मद साहिब आदि के विषयमें भी कही जा सकती है। और म० महावीर, म० बद्ध, २० ईसा आदि की परिस्थिति ऐसी थी कि वे ग्रह त्याग करके ही ठीक ठीक समाज सेवा कर सकते थे । मुहम्द साहिब आदि गृहस्थ बन कर तीर्थकर व्यों बने और और म० महाबीर आदि मुनि बनकर तीर्थकर क्यों बने-इसके अनेक कारण है । संक्षेप में उन कारणोंका वर्णन यहाँ किया जाता है:
१-दो तरह के मनुष्य होते हैं । एक तो वे जिनके ऊपर कोमलताका अधिक प्रभाव पड़ता है और कटोरतासे वे और भी अधिक खराब होते हैं । दूसरे वे जिन पर कोमलताका प्रभाव बहुत कम पड़ता है कोमलता से बल्कि वे सुधर ही नहीं सकते । उनको तो