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अपरिग्रह ]
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सारा उत्तराधिकारित्व भी उन्हें मिलता है। यूरोप, खासकर रूस में तो स्त्रियों का सम्पत्तिक अधिकार और भी अधिक है । बर्मा में व्यापारादि कार्य में स्त्रियाँ अधिकतर भाग लेती हैं, इसलिये परिग्रह और अपरिग्रह की चर्चा जैसी पुरुषों के लिये है वैसी ही स्त्रियों के लिये भी है । साधारणतः इस प्रकार इस प्रश्न का उत्तर दे' देने पर भी इस प्रश्न का एक विचारणीय अंश पड़ा ही रह जाता है । उस पर विचार करना चाहिये । जो लोग गुलाम हैं, वे इस व्रत का पालन कैसे करें ? अनेक स्त्रियाँ कहलाने को तो सेठानी कहलाती हैं, परन्तु सम्पत्ति पर उनका वास्तविक अधिकार बिलकुल नहीं रहता । वे इस व्रत का पालन कैसे करें ?
इस प्रश्न के उत्तर के लिये हमें परिग्रह के या पाप के मूल स्वरूप पर विचार करना चाहिये । पाप केवल बाहिरी क्रिया का नाम नहीं है, किन्तु असली पाप अपने अभिप्राय पर निर्भर है । जहाँ आसक्ति है वहाँ परिग्रह है । एक स्त्री का अपने पति की सम्पत्ति में लोक प्रचलित कानून के अनुसार हक्क हो या न हो परन्तु वह उस सम्पत्ति में उतनी ही आसक्त होती है जितना कि उसका पति । बस, यही परिग्रह की भूमिका है । कुटुम्ब मैं दस आदमी हों और उनमें कोई एक मुखिया हो तो इसीलिये बाक़ी नौ आदमी परिग्रह के पाप से छूट नहीं जाते । स्त्रियाँ अपरिग्रह के लिये उसमें आसक्ति कम करें, दानादि देने में बाधक न बनें, इस तरह वे अपरिग्रह-व्रत का पालन कर सकती हैं ।
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जहाँ स्त्री-धन के रूप में स्त्रियों के पास सम्पत्ति रहती है हाँ वे उसकी अपेक्षा से अपरिग्रह व्रत का पालन कर सकती हैं ।