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अपरिग्रह ]
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उदाहरणार्थ, दूध पीने के लिये एक गाय रखना एक बात है परन्तु इस आशय से कि अगर बचास गायें रखूँगा तो इस रूप में दो चार हज़ार की सम्पत्ति हाथ में रहेगी, यह सङ्कल्पी - परिग्रह ही है । परन्तु गौ-रक्षा की दृष्टि से रक्खीं जाँय तो यह संकल्पी - परिग्रह नहीं है।
उद्योगी व्यापार आदि के उपकरणों को रखना उद्योगी परिग्रह है । जैसे - आरम्भी - परिग्रह में मात्रा की अधिकता आदि से संकल्पीपन आ जाता है, वैसा यहाँ भी आ जाता है । इसलिये अपरिग्रही के लिये इसके मात्राधिक्य से बचना चाहिये ।
विरोधी - अन्यायी और अत्याचारियों से आत्म-रक्षा करने के लिये जो परिग्रह रक्खा जाता है-वह विरोधी- परिग्रह है । जैसे चोरों से रक्षित रहने के लिये-द्वार, ताला, तिजोड़ी आदि; अथवा शत्रुओं से रक्षित रहने के लिये तलवार बंदूक आदि । ये ही वस्तुएँ अगर दूसरों पर आक्रमण करने के लिये रकटी जाँय तो यहाँ संकल्पी - परिग्रह कहलायगा ।
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इन चार प्रकार के परिग्रहों में संकल्पी - परिग्रह ही वास्तव में परिग्रह है और वही पाप है । बाकी तीन परिग्रह तो तभी पाप बन जाते हैं जब उनमें किसी तरह से संकल्पीपन आ जाता है । चरित्रको पाँच भागों में विभक्त करके जो उसका वर्णन किया गया है, वह सामान्य दृष्टि से है । उसमें पूर्ण - अपूर्ण का विचार नहीं किया गया है, अथवा उसे पूर्ण चरित्र का वर्णन मानना चाहिये, और आगे बताई जाने वाली कसौटियों से पूर्ण अपूर्ण की कल्पना करना चाहिये ।