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अपरिग्रह ]
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वगैरह का संकेत करके उन्हें रोका जाय तो यह हिंसा नहीं है। जैसे - पशु-पालन में ऐसे अनेक अवसर आते हैं, परंतु इसीलिये पशु-पालक हिंसक नहीं कहला सकता । उसी प्रकार आत्म-रक्षा आदि के काम में भी समझना चाहिये ।
५ - समाज-सेवा के लिये समाजाश्रित न रहना पड़े, इसके लिये धन-संग्रह करनेवाला परिप्री नहीं है ।
समाज-सेवा का कार्य बड़ा जटिल है । समाज के सुधार के लिए जब कुछ ऐसे विचारों की आवश्यकता होती है जो प्रचलित मान्यता के विरुद्ध जाते हैं तब उनका प्रचार करना मुश्किल होता है । उस समय यदि कोई भी मनुष्य किसी भी तरह से समाजाश्रित
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हो तो उसका टिकना अत्यन्त कठिन हो जाता है । वह समाज को सत्पथ दिखला ही नहीं सकता । समाज, सुधारकों की पीठ पर तो मुक्के लगाती ही है; परन्तु पेट पर भी मुक्के लगाती है । इससे सिर्फ सुधारक का जीवन दुःखपूर्ण ही नहीं होता और उसकी बहुत-सी शक्ति बर्बाद ही नहीं जाती; किन्तु इसने सुधार का कार्य असफल या अत्यल्प सफल हो जाता है । इसके लिये अगर वह वैध उपायों से अर्थ-संग्रह करे तो भी वह परिग्रही नहीं कहला सकता। हां, उते आवश्यकतानुसार ही सम्पत्ति का उपयोग करना चाहिये और उसका उत्तराधिकारिय समाज को ही देना चाहिये ।
शंका --- समाज से मांगकर अगर कोई इसी बहाने से धन का संचय करे तो आप उसे परिग्रही कहेंगे या अपरिमही ? समाधान - समाज से पैसा लेकर अपने नाम पर संग्रह करनेवाला व्यक्ति परिग्रही ही नहीं,
लिये या अपने विश्वासघाती भी