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अपरिग्रह
[१६९ वगैरह का सेवन करना पड़े या वाहन आदि का उपयोग करना पड़े तो वह सब परिग्रह नहीं है ।.
शंका-यदि अपवाद का क्षेत्र इतना विस्तृत कर दिया जायगा तब इसकी अट में ऐयाशी का राज्य जम जायगा | मामूली नाममात्र की सेवा करनेवाले भी स्वास्थ्य की दुहाई देकर पहिले दर्जे में ही रेल यात्रा करेंगे, दो-दो चार-चार रुपयों के फल उड़ायँगे, मोटर में सैर करेंगे और फिर भी कहेंगे कि हम अपरिग्रही हैं ! क्या यह ठीक होगा ?
समाधान-नियमों और उनके अपवादों का दुरुपयोग सदा से होता आया है और आज भी होता है, भविष्य में भी होगा, परन्तु इसीलिये आवादों का विचार न किया जाय यह नहीं हो सकता । क्योंकि ऐसा करने से वास्तविक अपरिग्रहता रखते हुए भी उसके बाह्य रूप को न रख सकने के कारण अपरिग्रही की समाज-सेवक वृत्तियाँ व्यर्थ जाती हैं । हाँ, उपर्युक्त दुरुपयोगों को हम पहिचान सकें, इसके लिये कुछ विचार अवश्य ध्यान में रखना चाहिये । उदाहरणार्थ, अगर कोई समाज-सेवक पहिले दो में रेल-यात्रा करता है तो हमें निम्नलिखित बातों पर विचार करना चाहिये :
क्या उसके स्वास्थ्य के लिये यह आवश्यक है कि वह . अगर पहिले दर्जे में रेलयात्रा न करेगा तो उसका स्वास्थ्य इतना खराब हो जायगा कि उससे सेवा कार्य में क्षति पहुंचेगी ! या उसका जीवन जोखिम में पड़जायगा ! क्या उसकी सेवा इतनी बहुमूल्य है ? क्या समाज के लिये उसके व्यक्तित्व की प्रभावना