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अपरिग्रह ]
[१५९ अन्यायों का समर्थन कगना चाहे अथवा वातावरण ऐसा हो या राज्य के काबून ऐसे हैं। जिसस अपनी आजीविका स्वयं चलाने की आवश्यकता हो तो मुनि रेखती भी कर सकता है और उसके योग्य उपकरण भी रख सकता है, वह रहने के लिये कुटी भी बना सकता है । दि. जैन सम्प्रदाय में द्राविड संघ ऐसा हुआ है जो खेती और व्यापार से अपनी आजीविका चलाना मुनित्व के बाहर नहीं समझता था। साम्प्रदायिक कट्टरता के कारण यद्यपि उसे पापी कह दिया गया है; परन्तु इस प्रकार की गालियाँ तो अच्छे से अच्छे व्यक्ति को भी दी गई हैं । इतने पर भी द्राविड़ संघ के अनुयायियों की संख्या कम नहीं रही, वह एक विशाल संव हुआ है । आचार तथा आवार सम्बन्धी विचारों में उसने अनेक सुधार* किये थे ; इसलिये जैन मुनि निर्मितिता के साथ कृषि आदि कार्य बरे, इसमें आश्चर्यजनकता और अनुचितता बिलकुल नहीं है।
शंका- मुनित्व और श्रावकत्र का भेद भावों पर है यह ठक, परन्तु निष्परिग्रहता और अल्प परिग्रहता का कोई बाहिरी रूप भी तो बतलाना चाहिये । बाह्यपरिग्रह की दृष्टि से एक मुनि कैसा होगा ? और एक गृहस्थ से उसमें क्या अन्तर होगा !
उत्तर--मुनि और गृहस्थ का बाह्य अन्तर सदा के लिये नहीं बताया जा सकता; परन्तु जो आजकल की परिस्थिति के
* बीएसु णस्थि जीबो उन्मसण णात्य फासुगं अस्थि । सावज णहु मण्णा प गणइ जिह कप्पियं अठं । २६ । कच्छं खेत्तं वसहिं वाणिज्जं कारिऊन जीवंतो । ण्हंतो सायलणारे पाव परं स संनेदि । २७ । दर्शनसार ।