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अपरिग्रह ]
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आमदनी करते हैं, वह अनुचित है । इतना ही नहीं किन्तु जिस ब्यापार की आमदनी हमारी योग्यता और श्रम का फल नहीं किन्तु पूँजी का फल है, वह आमदनी भी अनुचित है । यह बात दूसरी है कि इस प्रथा का सर्वथा बहिष्कार करना अशक्य है, परन्तु हैं यह अन्याय अर्थात् पाप ही ।
यह पाप यहाँ जाकर ही नहीं अटकता परन्तु आगे चलकर यह बड़े बड़े अत्याचारों को जन्म देता है । उससे साम्राज्य नहीं किन्तु साम्राज्यवाद रूपी एक भयंकर राक्षम पैदा होता है जिस
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लेलिन का मत है कि साम्राज्यवाद वह आर्थिक अवस्था हे जो पूँजीवाद के विकास के समय पैदा होती है उसकी पाँच विशेषताएँ या दोष हैं । (२) पूर्ण अधिकारों को स्थापना (३) कतिपय महाजनों का आधिपत्य ( ३ ) पूँजी क' निर्यात ( ४ ) अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक गुटों का निर्माण ( ५ ) आर्थिक दृष्टि से देशों का बटवारा | जब बहुत बड़ी पूँजी लगाकर कोई व्यापार किया जाता है तब उसके लिये बड़े क्षेत्र की आवश्यकता होती है परन्तु दूर के क्षेत्रों में दूसरे पूँजीपति अपना स्थान जमा बैठते हैं इसलिये इन लोगों में खूब प्रतियोगिता होने लगती है । इससे इनकी आर्थिक लूट बहुत कम हो जाती है । तब ये आपस में मिलकर एक गुट बना लेते हैं। जो व्यापारी इनके गुट में शामिल नहीं होना चाहता उसके विरुद्ध आर्थिक लड़ाई छेड़ दी जाती है, जिससे या तो वह इनके गुट में आ जाता है अथवा मिट जाता है । इस प्रकार व्यापार के ऊपर अमुक गुट का