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[जैनधर्म-मीमांसा के दाँतों के नीचे करोडों मनुष्य पिस जाते हैं. पिसते रहते हैं । इतिहास के बहुत से पन्ने इसी प्रकार की काली कथाओं मे भरे पड़े हैं । इसी के लिये उपनिवेशों की रचना होती है । उपनिवेश
पूर्णाधिपत्य स्थापित हो जाता है। किसी गाँव में एक ही दुकानदार हो तो वह किस प्रकार मनमानी लूट करेगा, इससे हम इस पूर्णधिकार की भयंकरता को समझ सकते हैं । ये गुट बड़ी भारी पूँजी और व्यापक क्षेत्र के कारण एक विशाल-काय दैत्य सरीखे होते हैं । इस प्रकार के दो गुटों में जब भिडन्त होती है तब परिस्थिति विकट हो जाती है और कभी कभी तो दो राष्ट्रों के बीच में युद्ध छिड़ जाता है । इन गुटों में बल तो पूँजी का रहता है, इसलिये महाजनों का आधिपत्य हो जाता है । महाजनों के पास जब इतना रुपया इकट्ठा हो जाता है कि उनके बैंक अच्छा ब्याज पैदा नहीं कर पाते तब बैंकों का रुपया व्यापार में लगा दिया जाता है । इस प्रकार देश के व्यापार पर बैंकों का अर्थात् बैंकों के मालिकों-श्रीमानोंका गज्य हो जाता है। देश के भीतर व्यापार मुख्य वस्तु होने से ये लोग उस देश के वास्तविक शासक हो जाते हैं । जब धन, धन को पैदा करने लगता है तब पूँजीवाद का चक्र एक देश के भीतर ही सीमित नहीं रहता किन्तु पूंजी बाहर भेजी जाने लगती है, क्योंकि देश में काफ़ी पूंजी लग जाने से और अधिक पूँजी लगाने की गुंजायश नहीं रहती तब पूँजीपति लोग विदेशों में पूँजी भेजने लगते हैं और इस प्रकार ब्याज की अपेक्षा कई गुणी आमदनी करते हैं । जिन देशों