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प्रमचर्य
[१२५ उत्तर- स्वतन्त्रता का यह उपभोग बहुत महंगा दुःखद और घृणित है । एक मनुष्य घर के मकान में रहता है और एक भाड़े के मकान में रहता है । भाडेवाला चाहे तो हर महीने मकान बदल सकता है और घरू मकानवाला अपने घर में बँधा है, परन्तु गृह स्वामी की अपेक्षा भाड़त बनना कोई पसन्द नहीं करता । गरीबी आदि से या आर्थिक लाभ की दृष्टि से भाडेतु बनना पड़े, यह दूसरी बात है । अथवा, कोई आदमी घर में रहता है और दूसग किसी घर में नहीं रहता, वह आज इस मुसाफिरखाने में पड़ रहता है, कल उस होटल में और परसों उस धर्मशाला में । क्या यह स्वतन्त्रता स्थिरवासी से अधिक सुखप्रद है ? माँगेपन की दृष्टि से अविवाहित के लिये मैथुन की स्वतन्त्रता कष्ट-प्रद है ही। ऐसे मनुष्य का जीवन अव्यवस्थित, अशान्त, सतत वासनापूर्ण और अधिक पराधीन रहता है । इसके अतिरिक्त इस स्वच्छन्दता में घृणितता भी रहता है क्योंकि वेश्यासेवन आदि में सुसंगति स्वच्छता आदि नहीं मिलती या नहीं के बराबर मिलती है। बहुत से कार्य ऐसे हैं जिन्हें हम मूल पापों में शामिल नहीं कर सकत, फिर भी वे बहुत घृणा की दृष्टि से देखने योग्य होते हैं, क्योंकि वे अपने और पर को साक्षात् नहीं तो परम्परा से दुःखप्रद होते हैं । एक मनुष्य दुर्जनों की संगति में रहे, अशुचि भक्षण करे तो उसका यह कार्य हिंसादि पापों में साक्षात् रूप में अन्तर्गत न होगा, फिर भी दुःखप्रद और घृणित होने से वह हेय होगा। इसी प्रकार अविवाहित के वश्या सेवन को संकल्पी व्यभिचार में शामिल न कर सकने पर भी वह उपर्युक्त दोषों से पूर्ण होने