________________
(जैन-धर्म-मीमांसा
लड़की इस प्रकार पैसा पैदा करके आती थी तब कमाऊ पूतकी तरह उसका सन्मान बढ़ जाता था।
नीति के अन्य अंगों पर भी ऐसा ही विवेवन किया आसकता है जिससे मालूम होगा कि हज़ारों वर्षों के अनुभवने मनुष्यको नीतिधर्म की शिक्षा दी है | आदिमयुग में मनुष्य हिंसा, अहिंसा आदिको नहीं समझता था। धीरे धीरे सुख शान्तिकी खोज करते करते उसने अहिंसा आदि का अविष्कार किया। उनमें ब्रह्मचर्यका आविष्कार सबसे पिछला है । इसलिये महात्मा पार्श्वनाथ के युगमें चार ही व्रत हों, यह बहुत स्वाभाविक है पछिसे महात्मा महावीरने ब्रह्मचर्य नामक नया व्रत बनाया ।
इतिहास के ऊपर इस प्रकार एक विहंगम दृष्टि डालने से इतना तो माल्म होता है कि मनुष्य समाज ने मैथुनको पाप बहुत देर में समझा । और उसे स्वतंत्र पाप मानने की कल्पना तो और भी दरमें उठी । इसका कारण यही है कि जिस प्रकार हिंसा झठ चोरी आदि साक्षात् दुःखके कारण हैं, उस प्रकार थुिन नहीं । परिग्रहमें तो मनुष्य बहुतसी सम्पत्ति एकत्रित करके दृमराकी गमी और बेकारीमें कारण होता है, परन्तु थुनमें तो इतना भी दोष देखनमें नहीं आता। इस प्रकार अन्य सब पापोंकी अपेक्षा मैथुनको दुःखप्रदता बहुत कम होनेसे प्रारम्भका मनु-यसमाज इसे पामें न गिनस का । पीछे जब इसे अधिक अनुभव हुआ, उस अनुभवसे उसे सूक्ष्म दृष्टि प्राप्त हुई, तब वह मैथुनको संयममें रखनेका तथा पूर्ण ब्रह्मवर्यका आविष्कार कर सका । फिर तो इस दिशा में समाज इस प्रकार