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[जैन धर्म-मीमांसा
कुछ समय संयम मैथुनसे अपनी वासनाओंके बेगको कम करें, बाद में उसको अन्य सद्वृत्तियों में परिवर्तित करें ।
प्रश्न --मैथुन में जो आपने दोष बतलाये हैं उनका बहुत कुछ परिहार किया जा सकता है। अगर पति-पत्नी दोनोंही संयमी हों तो उनकी इच्छाओंका बलात्कार एक दूसरेपर नहीं हो सकता इससे पराधीनताका कष्ट बहुत कुछ कम हो जाता है । जब अनिच्छापूर्वक कोई काम करना पड़ता है तब पराधीनताका कष्ठ होता है । यदि दोनों संयमी हो तो कोई किसीको विवश न करेगा जब दोनों स्वेच्छा से राजी होंगे तब परावनिताका कष्ट न रहेगा। गर्भाधानादि रोकने के लिये कृत्रिम उपायोंसे काम लिया जा सकता है । इसलिये दूसरा भी दोष दूर हो जाता है । तीसरा दोष भी इतना जबर्दस्त नहीं है क्योंकि मात्रा से अधिक मैथुन ही शक्तिक्षय करता है अगर थोड़ा हो भी तो वह इतना नहीं हो सकता जिससे कि मनुष्य कर्तव्यच्युत होजाय । ग्लानिका कारण भी जबर्दस्त नहीं है क्यों कि वह तृप्तिका फल है । यों तो पेट भरनेके बाद भोजन से भी ग्लानि होजाती है, परन्तु इससे भोजन पाप नहीं हो जाता | स्थायिता न हो तो क्या हानि है ? जब अन्तमें वह दुःखप्रद नहीं है, तब क्षणिक हो इससे भी लाभ ही है । थोड़ा सही, पर है तो लाभ ही । विकारकी तीव्रता नामक दोष भी विशेष महत्त्व नहीं रखता, क्योंकि जब यह पाप सिद्ध हो जाय तभी इसमें विकारकी तीव्रताका दोषारोप किया जा सकता उपर्युक्त कारण न होने से यह कारण भी नहीं रहता ।