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ब्रह्मचर्य 1
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सम्बन्ध रखता है । शक्ति के संचय और उसकी रक्षा के लिये मनको वश में रखना या दुर्वासनाओं को विश्वप्रेम प्रकृतिप्रेम आदि में रूपान्तरित करना उचित है ।
२ - कौटुम्बिक और सामाजिक जीवन की शांति के लिये भी ब्रह्मचर्य अत्यावश्यक है । गृहस्थ जीवन की दृष्टिसे अकेली स्त्री और अकेले पुरुष का जीवन अपूर्ण है। दोनों के योग्य सम्मिलन से ही पूर्णता आती है । यह सम्मिलन एक ऐसा साम्मेलन है जिसमें तीसरे को स्थान नहीं मिल सकता है । अगर तीसरे का प्रवेश हुआ तो वह विश्वास और प्रेम नष्ट होजाता है जिससे यह सम्मिलन हुआ है । इससे यह आवश्यक है कि स्त्रीकृत पति-पत्नी को छोड़कर शेष सभी स्त्रीपुरूषों के साथ पवित्र प्रेम ही रक्खा जाय । उसके साथ मैथुन की कामना की कलु पतता न आने पांव |
स्त्री, पुरुष के लिये भोग की सामग्री है और पुरुष, स्त्री के लिये भोग की सामग्री है इस तरह इन दोनों में दुतरफा भोज्यभोजक भाव है । इसलिये दोनों ही समान हैं । यह समानता अन्यत्र देखने में नहीं आती । वहाँ एक ही भोज्य और एक ही भोजक 1 होता है और भोजक की प्रधानता रहती है । स्त्रीपुरुष में यह सम्बन्ध दुतरफा होने से अन्य जड़ या जड़तुल्य भोग्यों की अपेक्षा इसमें विशेषता आती है । हमारी कुर्सी के ऊपर अगर कोई दूसरा आदमी बैठ जाय तो भी हमारे और कुर्सी के सम्बन्ध में कोई फर्क न पड़ेगा, परन्तु अगर कोई पुरुष दूसरी स्त्रीसे सम्बन्ध स्थापित करले तो पहिली स्त्री से उसका वह सम्बन्ध ( प्रेम आदि ) न रह जायगा