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| जैन-धर्म-मीमांसा
भी रूप सत्य है । जैसे अमुक मनुष्य बहुत गौर है । बाल आदि काले होने पर भी बहुभाग की अपेक्षा गौर कहा गया ।
प्रतत्यि - आपेक्षिक कथन को प्रतीत्य सत्य कहते हैं । जैसे यह आम बहुत बड़ा है । यद्यपि सैकड़ों चीजें आम से बड़ी हैं परन्तु यहां आमकी अपेक्षा से ही उसकी लघुता महत्ता का विचार किया जाता है, न कि समस्त पदार्थों की अपेक्षा से
व्यवहार - संकल्प आदि की अपेक्षा से व्यवहार के अनुसार बोलना व्यवहार सत्य हैं । जैसे देहली कौन जा रहा है ? इसके उत्तर में कोई कह कि मैं जा रहा हूं । यद्यपि वह खड़ा हुआ है, फिर भी व्यवहार में ऐसा बोला जाता है, इसलिये व्यवहार सत्य है ।
सम्भावना - असंभव अर्थ को छेडकर उसी भात्रको लिये हुए सम्भव अर्थ को लेना सम्भावना सत्य है । जैसे, युवक अगर संगठित होकर कार्य करें तो मेरु को हिला दें । यहाँ मेरु का हिलाना असंभव है परन्तु इसका अर्थ यह है कि संगठित युवक मनुष्यसाध्य सब कुछ काम कर सकते हैं । महावीर ने तीनों लोकों का क्षुब्ध कर दिया । तीनों लोकों का अर्थात् समस्त विश्व को शुब्ध करना मनुष्य की शक्ति के पर हैं, परन्तु उसका यही अर्थ है कि जिस समाज में महावीर क्रान्ति मचा रहे थे, वह समाज महावीर के आन्दोलन से क्षुब्ध होगया ।
भाव-भाव के अनुसार किसी वस्तु का वर्णन करना, जैसे मैं कल उसके यहां अवश्य जाऊंगा । यहां पर इसका अर्थ सिर्फ यही है कि मैं जाने का प्रयत्न करूँगा, यह बात मैं सच्चे दिल से