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[ जैनधर्म-मीमांसा व्यवहार, संभावना, भाव और उपमा ।।
जनपद-ऐसे अनेक शब्द हैं जिनका एक भाषा में या एक देश में एक अर्थ होता है और दूसरे में दूसराः । जैसे दस्त का अर्थ हिंदी में 'विष्ठा' और उर्दू में 'हाथ' है । पाद का अर्थ हिन्दी में 'अपानवायु' और संस्कृत में 'पैर है। ऐसे प्रयोग होनेपर अर्थ का निर्णय देशके अनुसार करना चाहिये । जिस देशमें हम बोल रहे हों, वहाँपर उसका जो अर्थ होता हो वही मानना चाहिये । अथवा बोलनेवाला जिस भाषा में बोल रहा हो, उसीके अनुसार अर्थ समझना चाहिये । तथा बोलनेवालकी योग्यता आदिका विचार करके भी अर्थ करना चाहिते । बोलनेवालके आशय को बदलकर उसे असत्यवादी ठहराना ठीक नहीं ।
जुदी जुदी भाषाओं में एकही अर्थ को कहनेवाले जुदे जुदे शब्द होते हैं। हिन्दी में जिसे प्याज बोलते हैं, मराठी में उसे काँदा कहते हैं । एकबार दिल्ली के कुछ आदमी महाराष्ट्रमें गये और उनने एक दुकान से भजिये खरीदते हुए दूकानदारसे पूछा कि इसमें प्याज तो नहीं है ? दुकानदार प्याजका अर्थ न समझ कर बोला 'नहीं जी ! इस में प्याज नहीं, काँदा है ।' ग्राहकोंने जब भाजये खाये तब बिगड़कर बोले कि इस में तो प्याज है, तुमने हमें धर्म भ्रष्ट करदिया । उनका धर्मभ्रष्टतासे कैसे उद्धार हुआ यह तो नहीं माल्म, परन्तु इसमें संदेह नहीं कि दुकानदार सत्यवादी था, वह देश-सत्य बोला था।
सम्मति- बहुतजन आदर आदि भावसे सहमत होकर जिस शब्दका प्रयोग करें उसके अनसार बोलना सम्मति सत्य है ।