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. [ जैन धर्म-मीमांसा
कल्याणकी रक्षाके लिये बाब हिंसा और बाह्य अपत्यका उपयोग करना पड़ता है . कल्याणकर होनेसे हिंसाको हिंसा नहीं माना भाता। ये सब बातें अचौर्य व्रतके सम्बन्ध भी हैं । इमालेये इसके भी बहुतसे अपवाद है। उदाहरणके तौरपर पाँच आवाद यहाँ बताये जाते हैं।
१ किसाकी प्राणरक्षा, स्वास्थ्यरक्षा आदि के लिये उसके हितकी दृष्टिसे चोरी करना अनुचित नहीं है ।
जैसे कोई आदमी विष खाकर आत्महत्या करना चाहता है। मुझे मालम हुआ कि उसने अमुक जगह विरकावा है मैंने जाकर चुरा लिया तो यह वास्तवमें चोरी नहीं है। इसीप्रकार रोगी को अपथ्य से बचाने के लिये अपथ्यकी चोरी करनाभी चोरी नहीं है। पहिले कहा था कि बच्चोंसे छुपाकर वस्तु ग्वाना चोगे परन्तु अगर यह मालूम हो कि इस चीजको खिलानेसे बच्चे बीमार होजायगे तो उनसे छुपाकर खानामी चोरी नहीं है । यद्यपि इस अपवाद की ओटमे हम वास्तविक चोरीको भी अचर्यि कह सोते हैं, परन्तु कह सकना एक बात है और होना दूसरी बात । अपने भावोंको हम अपनेसे नहीं छुपा सकते ।
२-- अन्यायसे अथवा अनधिकारी होने पर भी अगर किसीने किसी वस्तुको अपने अधिकार कर लिया हो तो उसे चुराना चोरी नहीं है। जैसे मानो किसी सुलेखकने जनसमाज की भलाई के लिये कोई ग्रंथ बनाया और वह ग्रंथ किसी के हाथ लग गया अब वह अपनी प्रतिष्ठाको बनाये रखनेके लिये या और किसी