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। जन-धर्म-मीमांसा महाभारतके अनुसार तो सतयुगमें स्त्रियाँ बिल कुल स्वच्छन्द थी। वे चाहे जिसके साथ चली जाती थी, उस समय उसमें अधर्म नहीं माना जाता था, वह धर्म ही था । यह धर्म उत्तर कुरुमें अभी भी पाला जाता है । इस मनाजमें भी विवाह की मर्यादा अभी थोड़े दिनोंसे आई है जो कि उद्दा ठक के पुत्र श्वेतकेतु न चलाई । है ।
__द्रौपदी पाँच पति रखतीथी और फिर भी सती थी। इसीप्रकार हजारों स्त्रियाँ रखनेवाले राजा लोग भी अणुव्रती कहलाते थे । इतनाही नहीं, किन्तु वेश्या सेवन करनेपर भी उनका अणुव्रत नष्ट नहीं होता था।
___ जैनशास्त्रोंके अनुसार आदिम युगमें (भोगभूमिके युगमें ) बहिन भाईही पतिपत्नी बन जाते थे। बादमें यह रिवाज़ नो बन्द हुआ; फिर मामाकी ल की लेने में कोई ऐतराज़ न था । इससे मालूम होता है कि मैथुन के विषयों पुराने लोगाके विचार बहुत साधारण थे।
0 अनावृताः किलरा प्रिय अामन् वरानने ! कामाचार विहारिण्य स्वतंत्रावामहासिनि । तापां व्युच्चर गगानां कौमारा मन पनी नाधर्मो ऽ भूद्वरारोहे सहिधर्मः पुराऽभव ॥ तमद्यापि विधीयते तिर्यग्यानि गता प्रजा । उत्तरेषु च भो। कुरुष्वद्यापि पूयते ।। अस्मिंस्तुलोके न चिरान्मर्यादयं शुचिस्मिते उद्दालकस्य पुत्रेण स्थापिता श्वेतके ना || म भा. आदिपर्व ।
__ + एए णं मए पंचपंडवा वरिया, तते णं ते सिं वासुदेव पामक्खिाणं बइणि राय सहस्साणि महया महया सद्देणं उग्योसेणा २ एवं वयंति सुवरियं खलु भोदोवइए रायवर कन्नाए। ... हस्थिणानुरे नयरे पंचण्डं पंडवाणं दोघतीए य देवीए कहाणकरे भविस्सीत । णायधम्मकहा १६-१२० ।