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ब्रह्मचर्य ]
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उसका पूरा त्याग करना चाहिये। बाकी तीन का तो यथाशक्ति संयमही पर्याप्त | है
ब्रह्मचर्य
शास्त्रों में ब्रह्मचा अर्थ अनेक तरहका किया गया है । ब्रह्मचर्या करना - आला लीन होना पूर्ण संयम का पालन करना ब्रह्मचर्य हैं इस अर्थ के अनुसार अहिमामी ब्रह्मचर्य है, सत्यभी वर्ष है, अनी ब्रह्मचर्य है, आहि भी ब्रह्मचर्य है और ब्रह्मवतो ब्रह्म है ही | परन्तु जब संयम के अहिंसा आदिक पाँच मे जाते है तब उसका यह व्यापक अर्थ नहीं मना जाता ब्रह्मचर्य का अर्थ हैं मैथुनका त्याग । इसी अर्थको मानकर यह चतुर्थी व्रत बनाया गया है ।
यद्यपि ब्रह्मचर्षकी मत्ता शास्त्रमिं बहुत बताई गई है और प्रायःसमीने एक स्वरसे उसे एक महान व्रत बतलाया है, फिर भी यह एक प्रश्न है कि मचर्य का व्रत है क्यों ? और मैथुनमें पाप क्या है ? मनुष्य समाजकी स्थिरता के लिये मैथुन तो आवश्यक है ही मैथुन करनेवाले दोनों पात्र [स्त्री और पुरुष ] सुखानुभव करते हैं, इसमें किनके अधिकारों का नाश भी नहीं होता, फिर क्या बात है कि इसे पाप माना गया है ? हाँ, बात्कार पाप है, परपुरुषनेवन या परस्त्रीसेवन पाप है, यह कहना ठीक है । परन्तु बलात्कार आदि इसलिये पाप नहीं कहे जा सकते कि उनमें मैथुन प्रसंग है, किन्तु इसलिये पाप कहे जा सकते हैं कि उनमें जबर्दस्ती की जाती है। इसलिये वह हिंसालक है, उसमें छुपाकर काम किया जाता है