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सत्य ]
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जहाँ तक होगा कम बोला जायगा । अपवादों का उपयोग आपद्धर्म समझकर करना चाहिये ।
प्रश्न - आलोचना कर देने पर अतथ्य भाषण को उपयोगिताही नष्ट हो जायगी । महात्मा महावीर अमर मेघकुमार से कह देते कि 'मुझे तुम्हारे पूर्वभवों का स्मरण तो नहीं आया था परन्तु उस समय तुम्हें समझाने के लिये मैंने पूर्वभव को बात कहीयी? तो मेघकुमार के ऊपर जो प्रभाव पड़ा था, वह भी नष्ट हो जाता और इस तरह वह असंयम की तरफ फिर झुक जाता; इतनाही नहीं किन्तु दूसरे लोगों पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता ।
उत्तर - जहाँ आलोचना करने से अपवादिक असत्य भाषण का उद्देश पर कल्याण आदि माना जाय वहाँ उन लोगों के सामने आलोचना न करना चाहियें। अगर कोई भी आदमी ऐसा न हो जिस पर रहस्य प्रगट किया जाय तो मानसिक आलोचना ही करना चाहिये ।
प्रायश्चित्त का यह सारा विधान इसीलिये है जिससे कोई अपवादों का अधिक उपयोग न करे, तथा लोगों पर उसका बुर। प्रभाव न पड़े, वे अविश्वासी न हो जावें । इसलिये मूल उद्देश्य की रक्षा करते हुए जितनी बन सके, उतनी आलोचना करना चाहिये । प्रश्न- अहिंसा व्रत में भी आपने बहुत से अपवाद बताये थे किन्तु वहाँ पर प्रायश्चित्त का आपने ज़िक्र नहीं किया । इसका क्या कारण है ?
उत्तर - यह पहिले ही कहा जा चुका है कि हिंसा जीवन के लिये जितनी अनिवार्य है, उतना असत्य नहीं । इसलिये अहिंसा