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अचौर्य
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अहिंसा और सत्य के विषय में कहा था कि अहिंसा हिंसा और हिंसा अहिंसा हो जाती है ; सत्य असत्प, और असत्य सत्य हो जाता है, इसी प्रकार चौर्य अचौर्य आर अचौर्य चौर्य हो जाता है । बहन से कार्य एस है जो स्थूल दृष्टि से देखने पर चोरी मालूम होते हैं फिर भी वे चौरी नहीं होते; और बहुतसे काम ऐसे हैं जो चोरी नहीं मालूम होते, फिर भी वे चोरी ही हैं । इसप्रकार अहिंमा
और सत्य के ममान यह व्रत भी सूक्ष्म है तथा निरपवाद नहीं हैं । कुछ उपनियमों तथा उदाहरणासे यह बात स्पष्ट हो जायगी ।
१-कोई वस्तु अगर अपनी हो परन्तु यह बान अपनेको मालूम न हो, फिरभी उसे लेलेना चोरी है, क्योंकि लनेवालेने उसे अपनी समझकर नहीं लिया है । यह तो आकस्मिक बात हुई कि वह अपनी निकली परन्तु अगर वह दो की होती तो उसे ग्रहण करनमें इसे कुछ ऐतराज़ नहीं था । इसलिये ऐसा मनुष्य चोर ही है । यह अपनी है या नहीं, इस प्रकार के संदेहमें पड़करमी ग्रहण कर लेना * चेरी है ।
२-अपने कुटुम्चियोसे छुपकर अपनी वस्तु का ग्रहण करना चोरी है । कुटुम्बकी सम्पत्ति पर प्रत्येक कुटुम्बीका न्यूनाधिक अधिकार है । इस यं जब हम कोई चीन ग्रहण करते है तब अन्य कुटुम्बियों का अधिकार हडप करते हैं। मानलो कि हमे कोई राकनेवाला नहीं, है या अनुमति मांगने भर की देर है, सूचना देनेपर तुरंत मिल जायगी, तो भी अनुमति न लेकर किसी चीज का उपयोग
__ + स्वमपि स्वं मभ स्याद्वान वति द्वापरास्पदम । यदातदाऽऽ दीयमानम् बता जाय जायते ।
सागार धमामुन-४९