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[जैन-धर्म-मीमांसा इसलिये कन्याशुल्क चोरी है, और कन्याविक्रय तथा वरविक्रय तो इससे भी कईगुणी चोरी तथा डॉकूपन है।
६--अन्याय्य उपायोंसे तथा बदलेमें कुछ भी न देकर धनो. पार्जन करना भी चोरी है । किसी जगह जूआ या सट्टेकी मनाई हो तब इनसे धन कमाना तो चोरी है ही, परन्तु यदि इनकी कानूनसे मनाई न भी हो तो भी इन मागोंसे धन कमाना चोरी है। क्योंकि धनोपार्जनके अधिकारका नैतिक मूल यही है कि हम समाजसेवाका बदला प्राप्त करें। हमने ज्ञानस, शब्दसे, कलासे शारीरिक श्रमम कुछ सेवा की, उसके बदलेमें धन लेने का हमें अधिकार मिलता है; अगर हमने कोई भी सेवा न भी तो धन लेना चोरी है । जूर और सट्टे, हम समाजकी कोई सेवा नहीं करते इसलिये हमें उस धन प्राप्त करनेका कोई अधिकार नहीं है । फिर भी हम धन लेते हैं, इसलिये वह चोरी है।
७--जिस मालका वायदा किया है उसके बदले में दूसरा खराब माल देदेना भी चोरी है । इसका चोरीपन स्पष्ट ही है ।
८. भ्रमसे, अनिच्छापूर्वक वा छलसे अनुमति प्राप्त करलेना भी चोरी है । जैसे कोई आदमी हमारे पास रुपये रखगया परन्तु भूलसे उसने थोड़े माँगे तो जानते हुये भी उसके बाक़ी रुपये न देना भी चोरी है। कोई आदमी देना तो नहीं चाहता किन्तु अगर न देगा तो हम या नुकसान करदेंगे या अमुक काम ठीक तरहसे न करेंगे-ऐसे दबावसे धन लेना चोरी है । लाँच लेना इसी श्रेणीकी चोरी है । लाँच लेना और इनाम लेना, इन दोनों में अन्तर है। इनाम प्रसन्नताका फल है और लाँच विवशताका फल है। इसलिये