________________
सत्य]
. [७१ भलमानसाहत का निर्णय भी मैं ही करूँगी' तो इस बहानेसे वह संबंध तोड़ सकती है । जिस आदमी ने महीने भर काम कराया है उसे सदाचार का बहाना निकालकर पारिश्रमिक रोकने का हक नहीं है क्योंकि पारिश्रमिक परिश्रम का दिया जाता है न कि आचार का । दूसरी बात यह है कि ऐसे मामलों में मात्रा का विचार करना चाहिये । जितने अंश की कमी हो उतने ही अंश में हमें अपनी प्रतिमा को भंग करना चाहिये । 'ककरी के चार को कटार मारिये नहीं' की कहावत यहाँ भी चरिचार्थ होती है । दुरुपयोग करनेवाले तो हरएक नियम का दरुपयोग करते हैं, परन्तु नियम के आशय पर विचार करके निःपक्षता से उसका पालन किया जाय और कराया जाय तो दुरुपयोग की सम्भावना नहीं है।
५-शब्द का अर्थ करते समय उसके आशय पर ध्यान देना चाहिये । आशय को ही वास्तविक अर्थ समझना चाहिये । आशय को गौण करके प्रतिज्ञा से बचना या दूसरे पर असत्यता का आरोप करना ठीक नहीं।
यह कार्य भी बहुत कठिन है परन्तु इसके बिना छुटकारा भी नहीं है । सत्य और असत्य कुछ शब्दों का धर्म नहीं, आत्मा का धर्म है, इसलिये भावों के ऊपर ही अवलम्बित है। व्यवहार में भी हमें अभिप्राय के अनुसार अर्थनिर्णय करना पड़ता है । शास्त्रकारों ने भी कुछ भेद-प्रभेदों के साथ इस विषय का विवेचन किया है । गोम्मटसार जीवकांड में दस प्रकार के सत्य वचनों का उल्लेख किया गया है। जनपद, सम्मति, स्थापना, नाम, रूप, प्रतीत्य,