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[ जैनधर्म-मीमांसा बालविधवा भी वास्तव में विधवा नहीं कही जा सकती, क्योंकि उसकी प्रतिज्ञाएँ नाजायज़ हैं । .. . जिस बात को मानकर प्रतिज्ञा की गई है, वह अगर भ्रमरूप निकले तो भी प्रतिज्ञाको तोड़ना पाप नहीं है । जैसे कोई विद्यार्थी परीक्षा में प्रथम आया इसलिये मैंने उससे कहा कि मैं तुझे अमुक पारितोषिक दूँगा । परन्तु पीछे यह सिद्ध हुआ कि उसने चोरी की थी इसलिये प्रथम आगया है, ऐसी हालत में अगर मैं उसे पारितोषिक न दूं तो प्रतिज्ञाभंग का दोष न लगेगा।
शंका-- इस प्रकार अगर आप प्रतिज्ञाओं के तोड़ने का विधान बना देंगे तो दुनिया में प्रतिज्ञा का कुछ मूल्य न रहेगा, क्याकि कोई न कोई बहाना हरएक को मिल ही जायगा । कल कोई स्त्री पतिसे कहेगी कि तुम्हें भला आदमी समझकर मैं तुम्हारे साथ शादी की थी, परन्तु तुम भले आदमी नहीं हो इसलिये मैं सम्बन्ध तोहती हूं । कल कोई किसी से महीने भर काम करायगा और अंत में कुछ भी पारिश्रमिक न देकर कहेगा कि तुमको सदाचारी समझ कर मैंने काम कराया था, परन्तु तुम तो सदाचारी या योग्य नहीं हो इस. लिये मैं कुछ नहीं देता । इस प्रकार जगत में अंधेर हो जायगा । . . समाधान--- इस नियम में मनचाहा बहाना निकाल कर प्रतिज्ञा तोड़ने की आज्ञा नहीं है, किन्तु प्रतिज्ञा के पालन से जगकल्याण में बाधा पहुंचती हो तब प्रतिज्ञा तोड़ना चाहिये । प्रतिज्ञा यदि अन्याय्य या अनुचित न हो तो उसे तोड़ना विश्वासघात करना है। ऊपरके उदाहरणमें अगर स्त्रीने यह शर्त कराली हो कि 'जबतक तुम भले आदमी रहोगे, तभीतक मेरा तुम्हारा सम्बन्ध रहेगा और तुम्हारी