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________________ ७० ] [ जैनधर्म-मीमांसा बालविधवा भी वास्तव में विधवा नहीं कही जा सकती, क्योंकि उसकी प्रतिज्ञाएँ नाजायज़ हैं । .. . जिस बात को मानकर प्रतिज्ञा की गई है, वह अगर भ्रमरूप निकले तो भी प्रतिज्ञाको तोड़ना पाप नहीं है । जैसे कोई विद्यार्थी परीक्षा में प्रथम आया इसलिये मैंने उससे कहा कि मैं तुझे अमुक पारितोषिक दूँगा । परन्तु पीछे यह सिद्ध हुआ कि उसने चोरी की थी इसलिये प्रथम आगया है, ऐसी हालत में अगर मैं उसे पारितोषिक न दूं तो प्रतिज्ञाभंग का दोष न लगेगा। शंका-- इस प्रकार अगर आप प्रतिज्ञाओं के तोड़ने का विधान बना देंगे तो दुनिया में प्रतिज्ञा का कुछ मूल्य न रहेगा, क्याकि कोई न कोई बहाना हरएक को मिल ही जायगा । कल कोई स्त्री पतिसे कहेगी कि तुम्हें भला आदमी समझकर मैं तुम्हारे साथ शादी की थी, परन्तु तुम भले आदमी नहीं हो इसलिये मैं सम्बन्ध तोहती हूं । कल कोई किसी से महीने भर काम करायगा और अंत में कुछ भी पारिश्रमिक न देकर कहेगा कि तुमको सदाचारी समझ कर मैंने काम कराया था, परन्तु तुम तो सदाचारी या योग्य नहीं हो इस. लिये मैं कुछ नहीं देता । इस प्रकार जगत में अंधेर हो जायगा । . . समाधान--- इस नियम में मनचाहा बहाना निकाल कर प्रतिज्ञा तोड़ने की आज्ञा नहीं है, किन्तु प्रतिज्ञा के पालन से जगकल्याण में बाधा पहुंचती हो तब प्रतिज्ञा तोड़ना चाहिये । प्रतिज्ञा यदि अन्याय्य या अनुचित न हो तो उसे तोड़ना विश्वासघात करना है। ऊपरके उदाहरणमें अगर स्त्रीने यह शर्त कराली हो कि 'जबतक तुम भले आदमी रहोगे, तभीतक मेरा तुम्हारा सम्बन्ध रहेगा और तुम्हारी
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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