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[ जैनधर्म-मीमांसा हम सत्यवादी हैं, हमने भलाई के लिये या आत्मरक्षा के लिये झूठ बोला, इसलिये वह झूठ भी सत्य है । इस उच्छृखलता को रोकने के लिये यह कह देना आवश्यक है कि स्वार्थसिद्धि का नाम कल्याण या आत्मरक्षा नहीं है, इसके लिये अधिकतम प्राणियों का सार्वत्रिक और सार्वकालिक अधिकतम सुख का विचार करना चाहिये । सष्टीकरण के लिये इस विषय में भी यहां कुछ सूचनाएँ करना आवश्यक मालूम होता है । निम्नलिखित सात सूचनाएँ विशेष उपयोगी मालूम होती हैं:
१-न्याय की रक्षा के लिये अतथ्य भाषण करना चाहिये, केवल स्वार्थरक्षा के लिये नहीं। जैसे--
एक महिला के पीछे गुंडे पड़े हुए हैं और तुमसे उसका पता पूछते हैं कि वह क्या इस दिशा में गई है ! तुम अगर चुप रह जाते हो या 'नहीं मालम' कहते हो तो वे ' मौनं सम्मतिलक्षणम्' की नीति के अनुसार समझलेते हैं कि वह इसी तरफ गई है । अगर तुम विरोध करते हो तो तुम्हें गोली का निशाना बनाते हैं और इस बातका दृढ़ निश्चय करते हैं कि वह इसी दिशा में गई है । ऐसी हालत में अगर तुम झूठ बोल कर उनको उल्टे रास्ते लगा देते हो तो उसकी रक्षा हो जाती है । इस प्रकार उस महिला पर अत्याचार नहीं हो पाता । ऐसी परिस्थिति में असत्य बोलना ठीक है।
शंका- कल्पना करो कि डाकुओं ने हमारे ऊपर आक्रमण किया उस समय हम सत्य बोलकर लुट जं.य या अपने धनकी रक्षा करें।
समाधान-असत्य बोलकर भी धनकी रक्षा कर सकते हो। शंका--आपने कहा है कि स्वार्थ के लिये असत्य न बोलना