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[ जैनधर्म-मीमांसा धोखा देनेके भावसे ही बोला है इसलिये हूँ-हूँ करना भी असत्य भाषण है । वश्चनाके अभिप्रायसे मौन रखना भी असत्य भाषण है । हाँ, अभिप्राय दोनोंमें एक सरीखा होने पर भी बाह्य दृष्टिस उसमें. अन्तर है. इसलिये होसके तो मौन रखकर या हूँ-हूँ करके काम चलाना चाहिये परन्तु इससे काम न चले ते. न्यायसंगत रहस्यकी रक्षाके लिये असत्यभाषण करना भी अनुचित नहीं है। .. :
अगर रहस्य न्यायसंगत न हो तो छुपाने के लिये झूट बोलना अनुचित है । जैसे तक मुनिवेषी दुराचारी हैं, वह अपने दुराचारको छुपाता है या उसके भक्त दुराचारको छुपाते हैं, तो यह पूरा असत्य है, क्योंकि दुराचार न्यायसंगत नहीं है। ऐसे समाचार कब कितने कैसे छुपाना चाहिये, इस विषय का विस्तृत और स्पष्ट विवेचन सम्यग्दर्शन के प्रकरण में उपगृहन या उपवृंहणका कथन करते हुए किया गया है वहाँ से समझ लेना चाहिये । इसी प्रकार जो दुकानदार ग्राहकको कुछ का कुछ माल देते हैं, वे अगर इसे औद्योगिक असत्य कहकर असत्य के पापसे बचना चाहें तो नहीं बच सकते, क्योंकि उनका यह रहस्य न्यायसंगत नहीं है ।
इसी प्रकार जो स्त्री या पुरुष अपने दुराचार को छुपात हैं , वे आत्मरक्षा के नामपर असत्यके पापसे बचना चाहें तो नहीं बच सकते क्योंकि समाजके साथ उनने यह प्रतिज्ञा करली है कि हम अमुक जातिका दुराचार न करेंगे । अब अगर वे दुराचार करते हैं और आत्मरक्षा के नामपर उसे छुपाते हैं तो वे घोर असत्यवादी हैं, क्योंकि उनका इस प्रकार पाप छुपाना न्यायसंगत नहीं है । हाँ, जो दुराचार नहीं है परन्तु समाजने उसे दुराचार कह दिया हो तो