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[ जैनधर्म-मीमांसा हैं-उनका विचार है कि गोली चलानेवाले को हम मार डालेंगे
और बाकी पथिकों का धन लूटकर उन्हें जाने देंगे ऐसी अवस्था में डाँकुओं के साथ झूठ बोलकर उस पथिक की रक्षा करना उचित है । मतलब यह कि अन्याय के प्रतिकार के लिये अगर किसी ने खून किया हो तो झूठ बोलकर भी उसकी रक्षा करना चाहिये । जैनशास्त्रों में इस प्रकार न्यायरक्षा के लिये झूठ बोलने के बहुत से उदाहरण मिलते हैं । झूठ बोलकर के ही विष्णुकुमार मुनि ने सात सौ मुनियों की रक्षा की थी । भरत के ऊपर आक्रमण करनेवाले अतिवार्य राजा को धोखा देकर कैद करने के लिये राम लक्ष्मण ने नटवेष बनाकर उमकी वंचना की थी । लक्ष्मण ने तो नटीका वेष बनाया था । भट्टाकलंक ने बौद्ध विद्यालय में अपने जैनत्व को छुपाये रखने के लिये झूठ बोला था। इस प्रकार के बहुत से उदाहरण जैनशास्त्रों में मिल सकेंगे। ये कथाएँ कल्पित होने पर भी कथाकार जैनाचार्यों के विचारों का प्रदर्शन अच्छी तरह करती हैं।
२-रोगी, पागल आदि के साथ उन्हीं के हित के लिये झूठ बोलना अनुचित नहीं है । परन्तु झूठ बोलने से रोगी आदि को लाभ है, इस बात का पक्का निश्चय कर लेना चाहिये। इस पर उपेक्षा करना या स्वार्थवश झूट बोल जाना पूर्ण असत्य है।
रोगी का जीवन संशयापन है । अगर उससे यह कह दिया जाय कि तुम्हारा बचना असंभव है तो रोगी और भी जल्दी घबराकर मर जायगा-ऐसी हालत में उससे झूठ बोलना चाहिये । परन्तु यह रोगी है इसलिये झूठ बोलने में कुछ हर्ज नहीं' सिर्फ इतना