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सत्य ]
[५३ करना चाहिये ।
संकल्पी अतथ्य -- स्वार्थवश दूसरे के हिताहित का विचार न करके किसी निरपराध प्राणी के साथ असत्य बोलना या किसी दूसरे ढंगसे असत्यभाव प्रगट करना संकल्पी असत्य ( अतथ्य ) है ।
आरम्भी-पागलोंकी, बच्चों की, रोगी इत्यादिकी रक्षा के लिये जो हमें अतथ्य बोलना पड़े वह आरम्भी अतथ्य है । या अनजान में हमारे मुँहसे अतथ्य निकले, वह भी आरम्भी अतथ्य है।
उद्योगी--- अर्थोपार्जन आदि में अपने रहस्य छुपाने की जरूरत हो, और उसका छुपाना नैतिक नियमों या कानूनके विरुद्ध न हो तो उस के लिये अतथ्य बोलना उद्योगी अतथ्य है ।
विरोध--अन्याय के प्रतीकार के लिये तथा नैतिक आत्मरक्षा के लिये अतथ्य बोलना विरोधी अतथ्य है।
इन में से संकल्पी हिंसा के समान संकल्पी अतथ्य का त्याग अवश्य करना चाहिये । विरोधी के त्यागकी जरूरत नहीं । हाँ, अगर दूसरे किसी मार्ग से आत्मरक्षा या अत्याचारनिवृत्ति की जा सकती हो और वह मार्ग अपन पकड़ सकते हों तो विरोधी अतथ्य भी न बोला जाय, यह अच्छा है । बाकी दो के विषय में भी यत्नाचार करना चाहिये, तथा अनिवार्य परिस्थिति में ही उनका उपयोग करना चाहिये । यह याद रखना चाहिये कि जीवन में हिंसा जिस प्रकार अनिवार्य है, उस प्रकार असत्य अनिवार्य नहीं है । इसलिये हिंसा के लिये जितनी छूट दी जा सकती है, उतनी असत्य या अतथ्य के लिये नहीं दी जा सकती । फिर भी इतनी बात तो ठीक है कि अगर दुरुपयोग न किया जाय तो अतथ्य भी