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अहिंसा ]
[ १९ हिन्दू सिपाहियों का भूखे रहना और तैयार रसोई विरोधियों के हाथ लगना आदि ।
६- अन्धविश्वास-शत्रदलने अगर तीर मारकर झंडा गिरा दिया तो सिर्फ इसी बात से हिन्दू सेना का भाग उठना ।
७- अराष्ट्रीयता-एक हिन्दूराजा के अधःपतन को दूसरे हिन्दूराजा का चुपचाप देखते रहना । राष्ट्रीयता के नाते उसे अपनी क्षति न समझना ।
८- वर्णव्यवस्था-राज्यका कारवार क्षत्रियोंके हाथ में ही होने से अन्य तीन वर्षों का इस तरफ़ से उदासीन होकर ' कोउ नृप होय हमें का हानी' वाली नीतिका पालन करना । इसलिये विदेशी राजाओं का भी स्वदेशी राजाओं की तरह स्वागत करना ।
९-कोई भी देश जब अपने समय में समृद्धिकी चरमसीमा पर पहुंच जाता है तब उस में विलासिता आदि की मात्रा बढ़जाती है, धर्म और अर्थ लुप्तप्राय हो जाते हैं और कामका राज्य बढ़जाता है । इससे अनेक दुर्गुण पैदा होने के साथ वीरता और त्यागका अभाव हो जाता है । भारत में भी ऐसा ही हुआ।
उपर्युक्त कारण जितने जबर्दस्त हैं उनने ही स्पष्ट हैं । सम्भव है कोई हलकी पतली ऐसी भी घटना हुई हो जहाँ किसी धर्मामासी राजाने अहिंसा धर्म की ओट में अपनी कायरता को छुपाकर शत्रुओंको घुसने दिया हो, परन्तु ऐसी घटनाएँ इतनी बड़ी नहीं है जिनका देशव्यापी प्रभाव पड़ा हो, और इतिहास में जिनके लिये कोई स्थान हो ।
यह भी सम्भव है कि कुछ जैनाचार्योंने अहिंसा के संकुचित