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अहिंसा ]
[ ४३ तो उसे आत्महत्या का पाप न लगेगा। इसी प्रकार धर्मरक्षा, नीतिरक्षा, देशरक्षा आदि के लिये प्राणत्याग करना अनुचित नहीं कहा जा सकता । यदि किसी को यह विश्वास हो जाय कि मेरे जीवित रहने से असह्य यन्त्रणाएं देकर मेरे जीवन का दुरुपयोग किया जायगा, रहस्योद्घाटन करके अनेक न्यायमार्गियों को सताया जायगा, तो इसके लिये भी प्राणत्याग करना अनुचित नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार और भी बहुत से अबसर हो सकते हैं जब कि आत्मकल्याण और समाजहित की दृष्टि से प्राणत्याग करना पड़े परन्तु उसे आत्महत्या का पाप न लगे।
हां, यह बात अवश्य है कि जो काम किया जाय समभाव से किया जाय । उसमें अगर व्यक्तिगत द्वेष पैदा हो जाय, कर्तव्यबुद्धि न रहे या गौण हो जाय तो वहां असंयम हो जायगा । वह उतने अंश में हिंसा कहा जायगा।
अहिंसा के ऊपर--खासकर जैनधर्म की अहिंसा के ऊपर यह दोषारोप किया गया है कि इससे मनुष्य कायर हो जाता है, देशरक्षा आदि का कार्य नहीं किया जा सकता, भारत की पराधीनता का कारण यह अहिंसा ही है ।
परन्तु मेरी समझ में इस दोषारोप में कुछ दम नहीं है। यों तो प्रत्येक गुण की ओट में दोष छुपा करता है, या बहुत से दुर्गुण गुणों के रूपमें दिखलाये जाते हैं, परन्तु इसीलिये गुणों की अवहेलना नहीं की जा सकती । क्षमा की ओट में निर्बलता, विनय की ओट में चापलूसी, अमायिकता की ओट में चुगलखोरी, मितव्ययिता की ओट में कंजूसी आदि छिपायी जाती है. । इसी प्रकार