________________
अहिंसा ]
[ ४५
ने जितने महापुरुषों को माना है वे सब प्रायः क्षत्रिय हैं और प्रायः उन सबके साथ युद्धों की परम्परा लगी हुई है। अहिंसा और धर्म के पूर्णावतार स्वरूप तीर्थंकरों के जीवन भी युद्ध से खाली नहीं हैं ।
1
हरिवंश पुराण में नेमिनाथ तीर्थंकर का महाभारत युद्ध में भाग लेना बतलाया है । दोनों तरफ के वीरों की लिस्ट में नेमिनाथ का नाम आता है | इन्द्र के द्वारा भेजे हुए रथ पर चढ़कर नेमिनाथ युद्ध में जाते हैं । नेमीश्वर शाक नामक शंख बजाते हैं। और दक्षिण दिशा से चक्रव्यूह का भेदन करते हैं । अरिष्टनेमि के रथ के घोड़े हरे रंग के थे और जब जरासिन्ध ने कृष्ण के ऊपर चक्र छोड़ा तब वे कृष्ण के साथ खड़े थे । चक ने नेमिनाथ की और कृष्ण की प्रदक्षिणा की थी ।
शान्तिनाथ, कुन्थनाथ और अरनाथ तो तीर्थंकर होने के साथ चक्रवर्ती भी थे इसलिये उनने छ : खण्ड की विजय भी की थी । जब तीर्थंकर सरीखे सर्वश्रेष्ठ धर्माधिकारी युद्ध करते हैं और जैनशास्त्र इसका सुन्दर, विस्तृत और प्रशंसापूर्ण शब्दों में वर्णन
1
यदुष्वतिरथो नेभिस्तथैव बलकेशवौ । अतिक्रम्य स्थितान् सर्वान् भारतेऽतिरथांस्तु ते । ५० - ७७ / मातल्यधिष्ठितं सात्र सुत्रामप्रहितं रथं । नेमीश्वरः समारूढ़ो यदूनामर्थसिद्धये . ५१ - ११ दनौ नेमीश्वरः शंखं शाकं शत्रुभयावहम् । ५१-२० । मध्यं विमेद सेनानी नेमिर्दक्षिणतः क्षणात् ॥ ५१-२२ ॥ शुकसमैरत्रैर्युकोऽयं स्वर्णशृंखलैः । अरिष्टनेमिवीरस्य वृषकेतुमहारथः । ५२-६ | नेमीशस्त्ववधिज्ञातभाविकार्यगतिस्थितिः चक्रस्याभिमुखच विष्णुनैव सह स्थितिं । ५२ - ६४ | सहप्रदक्षिणीकृत्य भगवन्नोमिना हरिं । तत्करे दक्षिणे तस्थौ शंखचक्रांकुशांकिते । ५२-६६ ।