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[ जैनधर्म-मीमांसा
अधःपतन होगा, विश्वासघात आदि की वृद्धि होगी और समाज की मनोवृत्ति में जो बुरा परिवर्तन होगा, वह बहुत अधिक होगा । इस प्रकार इससे लाभ तो कुछ न होगा, साथ ही इतने स्थायी और अस्थायी नुकसान होंगे ।
प्रश्न- ऊपर के उदाहरण में हम दो मित्रों को न लेकर दम्पत्तिको लें तो आत्म-रक्षा के लिये पुरुषके द्वारा स्त्रीका वध होना उचित है या नहीं ? दूसरी बात यह है कि पुरुषकी अपेक्षा स्त्रीकी योग्यता कम होती है ।
उत्तर -- इससे परिस्थिति में कुछ भी अन्तर नहीं होता । स्त्री भी मित्र है, बल्कि उसकी रक्षा का भार पुरुष के ऊपर होनेसे पुरुषकी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है । इसलिये मित्रकी अपेक्षा पतिका विश्वासघात और अधिक हानिप्रद है । इसके अतिरिक्त ऊपर जो मैंने क, ख, ग, घ नम्बर देकर आपत्तियाँ बतलाईं हैं वे यहाँ भी ज्यों की त्यों लागू हैं । योग्यता की दृष्टि से भी इसका निर्णय नहीं होता, क्योंकि यहाँ पशुबल आदि की योग्यता से निर्णय नहीं करना है, किन्तु चैतन्य से निर्णय करना है । सुखानुभव करने की जो शक्ति पुरुष में हैं, उससे स्त्री में कम नहीं है समाज के लिये पुरुष जितना आवश्यक है - स्त्री उससे कम आवश्यक नहीं है | परिस्थिति के अन्तर से दोनों का कार्यक्षेत्र जुदा जुदा है, परन्तु नैसर्गिक योग्यता तथा समाज हितकी दृष्टि से दोनों समान हैं । इसलिये स्त्री-पुरुष, नीच ऊँच, विद्वान् - अविद्वान्, श्रीमान् गरीब आदि का भेद यहां नहीं लगाया जा सकता । अन्यथा क, ख, ग, घ वाले उपयुक्त दोष बहुत भयंकर रूप धारण कर लेंगे।
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