Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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भगवान बुद्ध की मुख्य 5 एवं सामान्य 40 मुद्राओं की...
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विधि
इसमें दोनों हाथों की मुद्रा समान होती है, किन्तु हाथों को रखने की स्थिति भिन्न-भिन्न हैं। दोनों हथेलियों को एक दूसरे के अभिमुख करते हुए बायीं हथेली को मध्य भाग में थोड़ी नीचे की तरफ रखें और दायीं हथेली को सामने की ओर छाती के स्तर पर धारण करें। तदनन्तर युगल हाथों के अंगूठे एवं तर्जनी का अग्रभाग एक-दूसरे को स्पर्श करता हुआ तथा मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका ऊपर की ओर फैले हुए रहने पर धर्मचक्र प्रवर्त्तन मुद्रा बनती है। 4 सुपरिणाम धर्मचक्र मुद्रा का नियमित प्रयोग करने से शरीरगत पृथ्वी एवं जल तत्त्व संतुलित रहते हैं। इनका सहयोग व्यक्तित्व का संतुलित विकास करता है। यह मुद्रा शरीर की हड्डियों को मजबूत एवं रक्त संचरण को नियमित करती है। • मूलाधार एवं स्वाधिष्ठान चक्र को जागृत करते हुए आन्तरिक शक्ति को उर्ध्वारोहित करती है तथा काम ग्रन्थियों को नियंत्रित कर ब्रह्म शक्ति को विकसित करती है।
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भगवान बुद्ध की 40 मुद्राएँ
भगवान बुद्ध ने भिन्न-भिन्न स्थितियों को दर्शाने हेतु कई मुद्राओं का प्रयोग किया था, उनमें मुख्य 40 मुद्राओं का वर्णन प्राप्त होता है वह संक्षेप में अनुक्रमश: इस प्रकार है
1. पेंग्- तुक्कर किरिय मुद्रा (तपस्या मुद्रा)
यह मुद्रा जापान में पेंग तुक्कर के नाम से तथा भारत में ज्ञान मुद्रा के नाम से पहचानी जाती है। बुद्ध द्वारा धारण की गई 40 मुद्राओं में से यह पहली मुद्रा है। भगवान बुद्ध ने इस मुद्रा के माध्यम से तपः साधना की थी अतः यह तपश्चर्या करने की सूचक है । आज इस मुद्रा का प्रचलन थाई बौद्ध परम्परा में है। यह संयुक्त मुद्रा वीरासन या वज्रासन में धारण की जाती है।
विधि
दायीं हथेली मध्यभाग की तरफ मुड़ी हुई, अंगूठा और तर्जनी के अग्रभाग स्पर्श करते हुए और शेष अंगुलियाँ शिथिल रूप से बायीं तरफ फैली हुई रहें। बायीं हथेली मध्यभाग की ओर अभिमुख, अंगूठा और तर्जनी के अग्रभाग