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50... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
सन्दर्भित ग्रन्थों के आधार पर कहा जा सकता है कि बुद्ध भिक्षाकाल में चार पात्रों को एक साथ धारण करते थे यह उसकी सूचक मुद्रा है। इस मुद्रा में चार भिक्षा पात्रों को युगपद् दर्शाया जाता है। यह मुद्रा वीरासन अथवा वज्रासन में धारण की जाती है। विधि ____ दायीं हथेली हृदय के आगे अधोमुख, अंगुलियाँ हल्की सी मुड़ी हुई और शरीर से दूर जैसे किसी पात्र को स्पर्श कर रही हो, उस भाँति रहें।
बायीं हथेली शिथिल रूप से ऊर्ध्वाभिमुख एवं गोद में पात्र को धारण करती हुई दिखाई देने पर पेंग्-फ्रसर्भत्र मुद्रा बनती है।12
पेंग्-फ्रसन्र्भत्र मुद्रा सुपरिणाम __ यह मुद्रा करने से वायु एवं आकाश तत्त्व प्रभावित होते हैं इससे हृदय की क्रिया एवं रूधिराभिसंचरण का नियंत्रण होता है। श्वसन एवं मल-मूत्र की गति में मदद मिलती है। शरीर में हवा का संतुलन होता है जिससे हार्ट अटैक, लकवा, मूर्छा, वायुविकार आदि नष्ट होते हैं। • यह मुद्रा अनाहत एवं विशुद्धि