Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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जापानी बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक स्वरूप ...237 तृतीय विधि
इस तीसरे प्रकार में दायां अंगूठा मुट्ठी के भीतर और बायां अंगूठा बाहर रहता है शेष वर्णन पूर्व मुद्रा के समान ही जानना चाहिए।55
नैबकु-केन्-इन् मुद्रा-3 सुपरिणाम
• यह मुद्रा जल एवं वायु तत्त्व को प्रभावित करते हुए हृदय के रक्त संचरण, श्वसन क्रिया, मल-मूत्र की गति, शारीरिक तापमान, प्राण वायु आदि का संतुलन बनाए रखती है। • स्वाधिष्ठान एवं विशुद्धि चक्र को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा ज्ञान ग्रंथियों को उद्घाटित कर दीर्घजीवन प्रदान करती है। . एक्युप्रेशर पद्धति के अनुसार यह मुद्रा शरीर में शक्ति संचारण, श्वसन तंत्र, कैल्शियम, आयोडीन, कोलेस्ट्राल आदि का संतुलन, स्वभाव में स्फूर्ति, धैर्यता आदि गुणों का विकास करती है। नाभि खिसकने से सम्बन्धित समस्याओं का समाधान भी करती है।