Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ...321
चिंतामणि मुद्रा-3 • पिच्युटरी एवं पिनियल ग्रंथियों को सक्रिय कर यह मुद्रा शेष सभी ग्रंथियों के स्राव का नियमन करती है। अनेक आन्तरिक उपलब्धियाँ तथा मानसिक, बौद्धिक एवं शारीरिक उत्थान करती है। 19. चिन्तामणि मुद्रा (चौथी रीति) - इसमें हथेलियाँ मध्य भाग में, अंगूठे Cross करते हुए, तर्जनी, अनामिका और कनिष्ठिका बाहर की तरफ अन्तर्ग्रथित हुई और मध्यमा एक-दूसरे के अग्रभागों से स्पर्श करती हुई रहती हैं।19
सुपरिणाम
• अग्नि एवं वायु तत्त्व के संयोग से कुपित वायु, गठिया, साइटिका, वायुशूल, लकवा आदि रोगों का निराकरण, मानसिक एकाग्रता में विकास और वायु सम्बन्धी विकृतियों का उपशमन होता है।
• इस मुद्रा को धारण करने से मणिपुर एवं विशुद्धि चक्र जागृत होते हैं।