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332... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
दै-ये-तो-नो-इन् मुद्रा
• इस मुद्रा के प्रयोग से मूलाधार एवं मणिपुर चक्र प्रभावित होते हैं। यह अग्नि तत्त्व पर नियंत्रण कर पाचक रसों का उत्पादन एवं ज्ञान तंतुओं का जागरण करती है।
एक्युप्रेशर विशेषज्ञों के अनुसार यह मुद्रा रक्तचाप, बी.पी., पित्त, एसिडिटी, सिरदर्द आदि में राहत देकर चारित्र गठन करती है तथा शरीर की गर्मी का संतुलन एवं मासिक स्राव का नियमन करती है।
28. धारणी अवलोकितेश्वर मुद्रा
यह मुद्रा जापानी बौद्ध परम्परा में गर्भधातु मण्डल की क्रियाओं के समय की जाती है। इस मुद्रा का प्रयोजन रहस्यमय एवं गोपनीय है। इसकी विधि निम्न है - विधि
दोनों हथेलियों को मध्यभाग में रखें, अंगूठों को ऊर्ध्व प्रसारित करते हुए बाह्य किनारियों से मिलायें, तर्जनी, अनामिका और कनिष्ठिका को अपने प्रतिपक्ष के अग्रभागों का स्पर्श करवायें तथा मध्यमा को हथेली के भीतर मोड़े हुए रखने पर धारणी अवलोकितेश्वर मुद्रा बनती है। 28