Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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विधि
बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
हथेलियों को अधोमुख कर अंगुलियों और अंगूठों को परस्पर में पृष्ठ भाग की तरफ अन्तर्ग्रथित करने पर वज्र माला मुद्रा बनती है । 125
सुपरिणाम
• वज्रमाला मुद्रा की साधना जल एवं अग्नि तत्त्व में संतुलन स्थापित करती है। यह शरीर को स्वस्थता प्रदान करते हुए यौन ग्रन्थियों, चेता कोषों, मांस, रजवीर्य में अस्थिमज्जा को उत्पन्न करती है। अग्निरस, पाचक रस एवं पित्त रस आदि का संतुलन रखती है। • स्वाधिष्ठान एवं मणिपुर चक्र को जागृत
हुए यह मुद्रा यौन विकारों का शमन एवं समाज के प्रति जागरूक बनाती है। • स्वास्थ्य एवं तैजस केन्द्र को प्रभावित कर यह मुद्रा काम वृत्ति का शोधन एवं ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन करती है।
106. वज्रमुष्टि मुद्रा
बौद्ध परम्परा में यह मुद्रा तीन रूपों में दर्शायी जाती है। प्रथम शक्तिसामर्थ्य की सूचक है, द्वितीय मातृचिह्न समझी जाती है और तीसरा रूप दरवाजा खोलने का सूचक है। शेष वर्णन पूर्ववत ।
वज्रमुष्टि मुद्रा - 1