Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियों ...435 सुपरिणाम
• पृथ्वी एवं अग्नि तत्त्व को संतुलित रखते हुए यह मुद्रा शरीर को बलशाली, स्वस्थ, तंदुरूस्त एवं तेजयुक्त बनाती है तथा स्नायु तंत्र की स्थिति स्थापकता बनाए रखती है। • वज्र कश्यप मुद्रा मूलाधार एवं मणिपुर चक्र को प्रभावित करते हुए संकल्प बल एवं पराक्रम बढ़ाती है। मनोविकारों का शमन करती है। ऊर्जा का ऊर्ध्वारोहण कर सहजानन्द की प्राप्ति करवाती है। • शक्ति एवं तैजस केन्द्र को जागृत करते हुए यह मुद्रा क्रोधादि कषाय एवं काम वृत्तियों को नियंत्रित रखती है। कामवासनाओं को संतुलित रखती है। ऊर्जा का संचय एवं ऊर्वीकरण कर वैयक्तिक विकास में सहायक बनती है। • प्रजनन, एड्रीनल एवं पैन्क्रियाज के स्राव को संतुलित करते हुए यह मुद्रा संचार व्यवस्था, हलनचलन, श्वसन, रक्त परिभ्रमण, पाचन, अनावश्यक पदार्थों के निष्कासन, प्रजनन अंगों सम्बन्धी रोगों के निवारण में विशेष सहायक बनती है। 105. वज्र माला मुद्रा
यहाँ वज्रमाला से तात्पर्य पुष्पमाला है। यह मुद्रा प्रतीक रूप में गूंथी हुई माला की आकृति दर्शाती है। अत: इसे वज्रमाला मुद्रा कहते हैं। शेष वर्णन पूर्ववत।
वजमाला मुद्रा