Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 507
________________ वर काय समय मुद्रा उपरोक्त को धारण करने से वायु तत्त्व संतुलित रहता है। यह मुद्रा विशिष्ट शक्ति के रूप में शरीर के प्रत्येक भाग का संचालन करती है । मानसिक शक्ति एवं स्मरण शक्ति का पोषण करती है। • इस मुद्रा का प्रभाव अनाहत एवं विशुद्धि चक्र पर पड़ता है। प्राणधारण एवं उसके सुनियोजन में सहायक बनते हुए अतिन्द्रिय क्षमता का प्रस्फुटन करती है। कलात्मक एवं सृजनात्मक कार्यों में प्रवृत्ति को बढ़ाती है। • विशुद्धि एवं आनंद केन्द्र को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा अनावश्यक वृत्तियों को सहज रूप से शमित करती है । भावधारा को निर्मल एवं परिष्कृत करती है। थायरॉइड पैराथायरॉइड एवं थायमस ग्रन्थि के स्राव को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा आवाज, स्वभाव एवं शारीरिक स्थूलता आदि को नियंत्रित रखती है। सुपरिणाम गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ... 441 · 110. वायु मुद्रा मुद्रा शास्त्र में वर्णित वायु मुद्रा के विभिन्न प्रकारों में प्रस्तुत मुद्रा जापानी बौद्धों के द्वारा धारण की जाती है । यह संयुक्त मुद्रा समस्त बाधाओं को हवा के द्वारा उड़ा ले जाने की सूचक है। शेष वर्णन पूर्ववत ।

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