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444... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
आन्तरिक हलन-चलन, हृदय की धड़कन, शरीर के तापक्रम एवं शक्कर की मात्रा को नियंत्रित रखती है। 112. जेन्-इन् मुद्रा ___यह मुद्रा कवच के लिए धारण की जाती है। शेष वर्णन पूर्ववत। विधि
हथेलियों को बाहर की तरफ करते हुए अंगूठों को मध्यमा के दूसरे पौर से स्पर्श करवायें, तर्जनियों को सीधी रखें, शेष अंगुलियों को हथेली में मोड़कर तर्जनी के अग्रभाग के समीप लायें। इस भाँति 'जेन्-इन्' मुद्रा बनती है। इस मुद्रा में हाथों में गति होती है।134
जेन-इन् मुद्रा सुपरिणाम
• जेन्-इन् मुद्रा का प्रयोग अग्नि तत्त्व को नियंत्रित एवं नियमित करता है। इससे शरीरस्थ अग्नि का जागरण, स्नायु तंत्र की स्थिति स्थापकता एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। • मणिपुर चक्र को सक्रिय करते हुए यह मुद्रा मनोविकारों को घटाती है। परमार्थ रुचि का वर्धन करती है। संकल्पबल, आत्मबल एवं पराक्रम को बढ़ाती है। • एड्रीनल एवं पैन्क्रियाज शक्ति के स्राव को संतुलित करते हुए यह मुद्रा पाचन तंत्र सम्बन्धी विकारों को दूर करती है।