Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ...439
108. वज्र श्री मुद्रा
विधि
वज्रसत्त्व मुद्रा
इस मुद्रा का सामान्य वर्णन पूर्ववत है।
हथेलियों को परस्पर में स्पर्शित कर मध्यभाग की तरफ अभिमुख करें। अंगूठे ऊपर की ओर प्रसरित, तर्जनी हल्की सी मुड़ी हुई, मध्यमा के अग्रभाग स्पर्श करते हुए तथा अनामिका और कनिष्ठिका हथेली की तरफ मुड़ी हुई एवं अपने प्रतिरूप को दूसरे पोर पर स्पर्श करती हुई रहें, तब वज्रश्री मुद्रा बनती है। 1 सुपरिणाम
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वज्रश्री मुद्रा का प्रयोग जल एवं पृथ्वी तत्त्व को संतुलित करते हुए शरीर एवं जीवन प्रवाह को सुरक्षित रखता है । शरीर के तापमान को संतुलित रखता है तथा रूधिर आदि की कार्य पद्धति का नियमन करता है। • स्वाधिष्ठान एवं मूलाधार चक्र को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा विपरीत परिस्थितियों के प्राप्त