Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text
________________
गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ...365 सुपरिणाम
• अग्नि तत्त्व को संतुलित करते हुए यह मुद्रा देहस्थ अग्नि को प्रदीप्त कर पाचन संस्थान को मजबूत एवं सुचारू बनाती है। • तैजस केन्द्र को सक्रिय कर यह मुद्रा वृत्ति शमन और शक्ति संचय करते हुए ईर्ष्या, घृणा, द्वेष, क्रोध, संघर्ष, भय आदि का नाश करती है। द्वितीय विधि
‘जौ-इन्' मुद्रा का यह प्रकार भी पूर्ववत कई नामों से जाना जाता है। यह संयुक्त मुद्रा है। इसमें हथेलियाँ ऊपर की ओर अभिमुख, अंगुलियाँ और अंगूठे सीधे फैलाये हुए तथा दायां हाथ बायें हाथ के ऊपर 45° का कोण बनाते हुए रहता है।56
जी-इन् मुद्रा-2 सुपरिणाम
• जौ-इन् मुद्रा की साधना अनाहत एवं मणिपुर चक्र को सक्रिय करती है। इससे हृदय रोग, श्वास-विकार, रक्त विकार, पाचन गड़बड़ी आदि से राहत मिलती है। • वायु एवं अग्नि तत्त्व का नियमन करते हुए यह मुद्रा शरीर के