Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 497
________________ गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ...431 थायरॉइड एवं पेराथायरॉइड ग्रन्थियों के स्राव को संतुलित करते हुए यह मुद्रा शरीर के सभी अंगों में शक्ति उत्पन्न करती है। यह हड्डियों के विकास, घाव भरने एवं रक्त प्रवाह को नियंत्रित करने में भी सहायक बनती है। 102. उष्णीष मुद्रा विधि दोनों हथेलियों को आमने-सामने कर अंगूठों को भीतर की ओर मोड़ें, दोनों अंगूठे बाहर की तरफ से एक-दूसरे को स्पर्श करें, शेष सभी अंगुलियाँ अंगूठों को स्पर्श करती हुई रहें, इस तरह उष्णीष मुद्रा बनती है।121 उष्णीष मुद्रा सुपरिणाम • इस मुद्रा का प्रयोग अग्नि एवं पृथ्वी तत्त्व को संतुलित रखता है। यह मुद्रा शारीरिक तापमान को नियंत्रित रखते हुए सभी अंगों को सक्रिय रखती है। रुधिर, मांस, चर्बी, अस्थि आदि के निर्माण में सहायक बनती है। शरीर को शक्तिशाली एवं सुदृढ़ बनाती है। स्नायु तंत्र की स्थिति स्थापकता बढ़ाती है। • मणिपुर एवं मूलाधार चक्र को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा आत्मविश्वास को

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