Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ...391 मुद्रा, अनिर्णयात्मक स्थिति का शमन कर असम्प्रज्ञात समाधि की प्राप्ति करवाती है तथा दिमाग को शांत रखती है। • पिच्युटरी एवं पिनियल ग्रंथि के स्राव को संतुलित कर यह मुद्रा आध्यात्मिक एवं भौतिक विकास में सहायक बनती है। शेष ग्रंथियों के कार्य संचालन में मदद करती है तथा अतिन्द्रिय ज्ञान को विकसित कर विशिष्ट शक्ति एवं गुणों को उत्पन्न करती है। 70. मुशोफुशि-इन् मुद्रा
प्रस्तुत मुद्रा जापान और चीन, दोनों स्थानों में समान रूप से धारण की जाती है। यह संयुक्त मुद्रा है जो तीन गूढ़ रहस्यों की एवं सृष्टि नियमों की सूचक है। शेष वर्णन पूर्ववत। इस मुद्रा के तीन प्रकारान्तर निम्न हैंप्रथम प्रकार __जिस मुद्रा में हथेलियाँ अंगूठे के तल वाले (गद्दी) स्थान से स्पर्श करती हुई, मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका ऊपर की ओर फैलती एवं अग्रभागों का स्पर्श करती हुई तथा तर्जनी दूसरे जोड़ से झुकती एवं अंगूठों के अग्रभागों का स्पर्श करती हुई रहती है उसे 'मुशो फुशि-इन्' मुद्रा कहते हैं।83
मुशो फुशि-इन् मुद्रा-1