Book Title: Bauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 478
________________ 412... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन सुपरिणाम • यह मुद्रा अनाहत, विशुद्धि एवं आज्ञा चक्रों के सुचारू संचालन में सहायक है। • वायु एवं आकाश तत्त्व को संतुलित करते हुए यह मुद्रा छाती, फेफड़ें, हृदय, थायमस, थायरॉइड आदि के विकारों पर नियंत्रण करती है। शरीर में स्थित विष द्रव्यों को हटाकर शरीर को स्वस्थ बनाती है। • थायमस, एड्रिनल, पैन्क्रियाज एवं पीयूष ग्रन्थि के स्राव को संतुलित करते हुए यह मुद्रा बालकों के विकास में सहायक बनती है। रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करती है तथा साधक को तनाव मुक्त, उत्साही एवं प्रसन्न बनाती है। द्वितीय प्रकार ___ हथेलियों को समीप रखते हुए अंगूठों को एक साथ फैलायें, तर्जनी को सीधी कर हल्की सी पीछे की ओर झुकायें, मध्यमा के अग्रभागों को परस्पर में स्पर्श करवायें तथा अनामिका और कनिष्ठिका को हथेली के भीतर की तरफ अन्तर्ग्रथित करें तब ‘सन्-कौ-इन्' मुद्रा का दूसरा प्रकार बनता है।104 सन्-की-इन मुद्रा-2

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