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गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ...413 सुपरिणाम
चक्र- मणिपुर, आज्ञा एवं विशुद्धि चक्र तत्त्व- अग्नि, आकाश एवं वायु तत्त्व प्रन्थि- एड्रिनल, पैन्क्रियाज, पिनियल, थायरॉइड एवं पेराथायरॉइड ग्रन्थि केन्द्र- तैजस, दर्शन एवं विशुद्धि केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- यकृत, तिल्ली, आँतें, नाड़ी तंत्र, पाचन तंत्र, स्नायु तंत्र, स्वर तंत्र, निचला मस्तिष्क, गला, मुँह, कान, नाक आदि। 88. शंख मुद्रा __ शंख मुद्रा के कई प्रकार हैं। प्राय: सभी परम्पराओं में इस मुद्रा का प्रयोग होता है। जापानी बौद्ध वर्ग में दो प्रकार की शंख मुद्राएँ की जाती है जो शंख ध्वनि की सूचक हैं। उनकी विधियाँ निम्न हैंप्रथम प्रकार
इस मुद्रा में दोनों मध्यमाएँ अग्रभाग पर स्पर्श करती हुई, तर्जनी प्रसरित एवं हल्की सी झुकी हुई, अनामिका और कनिष्ठिका अंगुलियाँ हथेली में मुड़ी हुई, अंगूठे हथेली में मुड़े हुए तथा अनामिका के अग्रभाग को स्पर्श करते हुए रहते हैं।105
शंख मुद्रा-1